
अप्रेल 22, 2020
विषय – ‘मैं ही मेरा रक्षक हूँ’
आई-कैन कन्वर्सेशन के इस अध्याय में भारतीय संगीत जगत के प्रसिद्ध गायक और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित श्री कैलाश खेर के साथ आई कैन की ओर से अपर्णा भट्टाचार्य ने आज के कठिन समय में लोगों को एक सकारात्मक प्रेरणा देने के उद्देश्य से कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर वार्तालाप किया। कोविड-19 की इस कठिन परिस्थिति में लोगों को सकारात्मकता व आत्मनिर्भरता की प्रेरणा देने के उद्देश्य से हाल ही में रिलीज हुए कैलाश खेर के गाने ‘मैं ही मेरा रक्षक हूँ’ की इस पंक्ति को ही वार्तालाप का शीर्षक रखा गया। कैलाश खेर भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। आज कैलाश घराना के नाम से संगीत घराना है जो इनके संगीत से प्रेरित है।
Compiled by Pinkal
इस जिंदगी का दोस्तो माफूम यह नहीं
कि खाए पिए कुछ रोज और मर जाए आदमी
इन सार्थक पंक्तियों से शुरुआत करते हुए कैलाश खेर ने अपने व्यक्तिगत विचारों को सामने रखते हुए कहा कि जब भी ईश्वरकृत या प्रकृतिकृत इस प्रकार का कोई भी संकट या आपदा हमारे सामने आती है तो उसके विपदारूप के पीछे मानव जाति का कोई ना कोई हित छुपा होता है, प्रकृति का कोई महत्वपूर्ण संदेश छुपा होता है। आज इस कठिन समय में देश के मुखिया से लेकर आमजन तक सभी को एकजुट होकर उस संदेश को जानना है क्योंकि किसी भी विपदा से बचाव के लिए उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करना ही सबसे बड़ा बचाव है। इसलिए जहां एक ओर देश के डॉक्टर, पुलिस, सरकारी कर्मचारी आदि सभी जान पर खेलकर इस कठिन परिस्थिति से लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं हम सब को भी सही जानकारी प्राप्त करके, सरकार के आदेशों का पालन करके स्वयं को सुरक्षित रखना चाहिए और इस जंग में सहभागी बनना चाहिए। इसके अतिरिक्त जो लोग अभी भी इस परिस्थिति की गंभीरता को ना समझकर उत्पात मचा रहे हैं, सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं और उल्टे जनता की सेवा कर रहे पुलिस, सरकारी कर्मचारी जैसे लोगों पर हमला कर उन्हें चोट पहुंचा रहे हैं, उन्हें प्रकृति के इस संदेश को पहचान कर समझदारी से काम लेना चाहिए और सरकार के आदेशों का पालन करते हुए स्वयं की रक्षा की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए।
हालिया रिलीज उनके गाने ‘मैं ही मेरा रक्षक हूं’ के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इस गाने के तथ्य को समझाते हुए कहा कि आज इंसान अपनी आंतरिक दुनिया से कटकर केवल बाहरी जीवन में लीन है परंतु अब समय आ गया है कि व्यक्ति को आत्ममंथन और ध्यान के माध्यम से अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है। यह समय जब इंसानियत को चारों ओर से अंधकार ने घेर रखा है और इंसान डरा-सहमा घर में सिमट कर बैठा हुआ है, तो ऐसे में व्यक्ति को अपने अंदर ईश्वर को ध्यान के माध्यम से खोजना चाहिए। हमें इस बात को समझना चाहिए कि इतने वर्षों तक लगातार मानव द्वारा प्रकृति का दोहन किए जाने के कारण प्रकृति अब विध्वंसक रूप में आ गई है और अब यह अपना स्वरूप बदल रही है। कुछ समय बाद फिर से प्रकृति एक नए व ताजे रूप में सामने आएगी।
वार्तालाप को आगे बढ़ाते हुए अपर्णा भट्टाचार्य द्वारा इस समय घर बैठकर जो लोग (खासकर युवा पीढ़ी) इस परिस्थिति में नकारात्मक होकर समय व्यतीत कर रहे हैं, मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, जिनकी कोई दिनचर्या नहीं रही है और जो अपने समय का सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं, उनकी स्थिति को सामने रखा तो कैलाश खेर ने घर के बड़ों से लेकर बच्चों तक के जीवन में पिछले कुछ सालों में आए परिवर्तनों को इसकी जड़ मानते हुए समस्या पर प्रकाश डाला। जिस प्रकार संयुक्त परिवार बदलकर एकल परिवारों में तब्दील हो गए हैं, माता-पिता के बड़े-बड़े सपनों का बोझ बच्चे ढो रहे हैं और उन सपनों को पूरा करने में बच्चों ने मां-बाप को ही वृद्ध आश्रमों में पहुंचा दिया है, तो इसके लिए दोनों पीढ़ियाँ बराबर की जिम्मेदार हैं। घर के बड़ों को बच्चों के लिए बड़े ख़्वाब देखने का अधिकार है परंतु वह इतने भी बड़े न हों कि दोनों पीढ़ियों को उनकी कीमत चुकानी पड़े। भारतीय संस्कृति में जब एक समय यह बड़े सपनों की दौड़ नहीं थी, तो कोई वृद्ध आश्रम भी नहीं थे और बच्चे सहृदय अपने बुजुर्गों की देखभाल करते थे। परंतु अपने बड़ों के सपनों को पूरा करते-करते युवा पीढ़ी इतना आगे निकल गई है कि आज उसके पास उन्हीं बड़े-बुजुर्गों के लिए समय नहीं है। आज विवाह विवाह जैसा संस्कार एक एग्रीमेंट बनकर रह गया है। युवाओं के संदर्भ में देखें तो आज हर चीज, हर सुविधा उनको समय व उम्र से पहले उपलब्ध है। उसका बहुत नकारात्मक प्रभाव भी आज की युवा पीढ़ी पर पड़ा है। सही समय आने पर वे उस खुशी को महसूस नहीं कर पाते हैं क्योंकि उसका अनुभव वह पहले ही ले चुके होते हैं। सपनों की दौड़ और सब कुछ पा लेने की ख़्वाहिश में युवा पीढ़ी इस कदर फँसी है की उसके पास स्वयं अपने साथ भी दो पाल सुकून से बैठने का समय नहीं है। ऐसे में युवा पीढ़ी को इस भटकाव से बाहर निकलने की आवश्यकता है। क्योंकि एक ही जन्म में तीन बार शून्य तक आकर पुनः उन्नतिशील होने का सामर्थ्य व्यक्ति में होता है परंतु वह खुद इस सामर्थ्य से अनजान है। युवाओं के इसी सामर्थ्य, इसी उन्नति से कोई भी देश उन्नतिशील बनता है। अतः देश को उन्नतिशील बनाने के लिए युवाओं को इस सामर्थ्य से रूबरू कराने की आवश्यकता है।
आज के समय में जहां भूमंडलीकरण ने सभी संस्कृतियों को एक मिश्रित रूप की ओर अग्रसर कर दिया है, ऐसे में देश की युवा पीढ़ी दूसरे देशों की भाषा, उनकी संस्कृति की तरफ आकृष्ट हो रही है और उसके अंदर अपने देश की भाषा व संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास में कमी आ रही है। इस स्थिति में कैलाश खेर आईआईएम, आईआईटी, लवासना जैसे संस्थानों में जाकर युवा पीढ़ी को अपने देश, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति को उन्नतिशील बनाने, उसका गौरव बढ़ाने हेतु प्रेरित करने का और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास करते रहे हैं। सालों से बाहरी आक्रमणकारियों, शासकों ने हमारे देश की भाषा, संस्कृति, धर्म, विश्वास आदि को ध्वस्त करने का प्रयास किया। इसलिए कैलाश खेर युवाओं को समझाते हैं कि यह धरती अध्यात्म की धरती है। सबसे ज्यादा मनीषी व ज्ञानी लोग यहां हुए हैं। आज भी आंकड़ों के आधार पर हर बड़े देश में, हर पेशे में भारतीय कर्मचारियों की संख्या सर्वाधिक है। भारतीय प्रतिभा आज दुनिया के हर कोने में मौजूद है। बड़े-बड़े व्यवसायों को चलाने में भारतीय उपभोक्ता-वर्ग का योगदान है। ऐसे में यह सारी बुद्धिमत्ता अगर अपने देश के विकास में प्रयोग की जाए तो देश का कोई मुकाबला नहीं। इसके लिए देश के युवाओं को जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। इसके लिए युवा वर्ग को सर्वप्रथम ध्यान और संयम के माध्यम से स्वयं को एक बेहतर मनुष्य बनने का प्रयास करना चाहिए। आज घर के अंदर रहकर अपने घर के बड़े बुजुर्गों के साथ समय बिता कर उनके अनुभवों को जानना चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए और इस लॉक्डाउन के समय का सदुपयोग करना चाहिए।
इन्होंने बताया कि किस तरह आज व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मसलों में इतना मशगूल है कि उसको पुण्य तो करना है परंतु नीयत पवित्र नहीं है, उसके पास धन है परंतु समय नहीं है, ऐसे में प्रकृति ने संपूर्ण मानव जाति को ऐसा समय ला दिया है कि सबको घर में कैद कर दिया। अब ईस परिस्थिति में व्यक्ति को सर्वप्रथम अपना ध्यान रखना है, खुद में जीवंतता लानी है और स्वयं को जागरूक बनाना है। यह समय ऐसा है जिसमें एक ओर जहां कोरोना वायरस जैसी महामारी ने पूरी दुनिया को अस्त-व्यस्त कर दिया है वहीं दूसरी ओर बहुत सारे जागरूक व सकारात्मक लोग इस परिस्थिति मैं सकारात्मकता खोज रहे हैं ताकि लोगों को इस परिस्थिति से लड़ने का हौसला दिया जा सके। कैलाश खेर इस परिस्थिति के सकारात्मक पक्ष को सामने रखते हुए कहते हैं कि लंबे समय से प्रगति का जिस गति से दोहन हो रहा था, विकास की दौड़ में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करके जो असंतुलन पैदा हो गया था, उसको यह प्रकृति इस विपदा के द्वारा पुनः संतुलित करने का प्रयास कर रही है। पिछले कुछ समय में कई स्थानों पर जल स्रोतों, वातावरण आदि में आई प्रदूषण की कमी इसका जीवंत उदाहरण है। और इसीलिए प्रकृति के बदलते स्वरूप के साथ मानव और मानव जीवन में भी परिवर्तन आ रहा है। प्रकृति ने मानव को अपने स्वभाव में, विश्वास में, कर्तव्य में, भावनाओं में परिवर्तन और शुद्धिकरण करने का एक मौका दिया है। और बहुत सारे लोग ऐसा कर भी रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है I-CAN जैसी संस्था जो कि बिना किसी स्वार्थ के इस कठिन घड़ी में ज़रूरतमंदों की मदद करके पुण्य का काम कर रही है।
भारतीय लोगों के जीवन और अभी चल रही परिस्थितियों के संदर्भ में आध्यात्मिकता के महत्व के बारे में कैलाश खेर का मानना है कि भारतभूमि ज्ञानी संतो व पशुओं की भूमि रही है। और यहां का अध्यात्म, वेदत्व व धर्म आदि सभी मानव को एक बेहतर जीवन जीने का ढंग सिखाते हैं। किसी विशेष धर्म से जुड़ा ना होकर अध्यात्म केवल एक जीवन पद्धति है जो काफी हद तक वैज्ञानिक भी है। शस्त्र और शास्त्र, योग, व्यायाम आदि सभी दिनचर्या के अंग हैं जो इस देश में सदियों से सीखे और सिखाए जाते रहे हैं। आज पूरी दुनिया के लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यह आध्यात्मिक शक्ति का ही प्रभाव है कि इतनी कठिन परिस्थिति में भी पुलिसकर्मी, चिकित्साकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी, सरकारी कर्मचारी, दैनिक जरूरतें उपलब्ध कराने वाले लोग बड़ी निष्ठा से जान पर खेलकर मानवता की सेवा कर रहे हैं।
संगीत के संबंध में अपने विचार रखते हुए कैलाश खेर ने बताया कि संगीत से पहले मनुष्य को बाहरी कोलाहल से भीतरी शांति की ओर जाने की आवश्यकता है। और इस समय जब सारा विश्व अपने घर की चारदीवारी में बैठा है, यह एकदम उचित समय है कि व्यक्ति बाहरी दुनिया, भागदौड़, मोह-माया इन सबसे ऊपर उठकर स्वयं की आंतरिक शांति को तलाश करे, तभी अच्छा संगीत पैदा कर सकता है अर्थात अपनी प्रतिभाओं को निखार सकता है। अपने जीवन में और व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। इसके अतिरिक्त कैलाश खेर ने अपने स्वयं के जीवन संघर्ष से प्राप्त अनुभव को साझा करते हुए बताया कि संगीत व्यक्ति की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है। वह हृदय से निकलता है और उसको बिना किसी बाधा के, बिना किसी व्यवसायिक आकांक्षा और आर्थिक उद्देश्य के स्वतः प्रवाहित रूप में बहने देना चाहिए तभी वह असल में सुखदायी हो पाता है। ये स्वयं अपने सारे गीतों के रूप में हृदय की अनुभूतियों, आध्यात्मिक चिंतन व जीवन के सहज प्रवाह को शब्दबद्ध करते आए हैं और इनकी यही अनुभूतियां आज इनको विश्व भर में प्रसिद्धि दिला चुकी हैं।
निष्कर्षत: तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के अंदर जो भी प्रतिभा है, वह जो भी कार्य करना चाहता है, उसके परिणामों की चिंता ना करते हुए व्यक्ति को उस कार्य को हृदय से व लगन से करना चाहिए, फिर वह कार्य स्वतः सफल हो जाता है। यह लॉकडाउन का समय इस अनुभूति के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इसीलिए लोगों को परिस्थिति को समझते हुए, प्रकृति के संदेश को समझते हुए स्वयं अपनी स्वयं की रक्षा की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और घर बैठकर एक सकारात्मक सोच के साथ अपने मूल्यों, अपनी प्रतिभाओं को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए। चिंतन, ध्यान व योग के माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अपने परिवार के बड़े लोगों के साथ समय व्यतीत करके उनके अनुभवों को ग्रहण करना चाहिए। और जिस तरह प्रकृति अपने आप को परिवर्तित कर एक नए रूप में ढालने का प्रयास कर रही है, स्वयं को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है, वैसे ही मानव को भी अपने व्यक्तित्व, अपनी प्रतिभा, अपनी सोच, अपना व्यवहार आदि पर चिंतन करते हुए स्वयं को एक बेहतर मानव बनाने का प्रयास करना चाहिए।